पर्यावरण

आज पानी की समस्या गंभीर: सूखा और बारिश की कमी बढ़ा रही चुनौती

पानी की समस्या का परिचय

आज पानी की समस्या एक अत्यंत गंभीर और व्यापक मुद्दा बन गया है, जो वैश्विक स्तर पर चिंताओं का कारण है। वर्ष 2023 में, जलवायु परिवर्तन के कारण विश्वभर में सूखा और अनियमित व बारिश की कमी की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में पानी की कमी गंभीर रूप धारण कर चुकी है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2.2 बिलियन लोग साफ पानी की पर्याप्त मात्रा से वंचित हैं, और 2050 तक यह आंकड़ा और भी भयानक हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से विश्व के अनेक हिस्से बार-बार पड़ने वाले सूखे का सामना कर रहे हैं, जिससे स्थानीय जल संसाधन सूख रहे हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका का साहेल क्षेत्र, भारत का राजस्थान और अमेरिका के कैलिफोर्निया जैसे क्षेत्रों में पानी की कमी की समस्या अत्यंत विकट बन चुकी है। ग्लोबल वॉटर पार्टनरशिप की एक स्टडी बताती है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक वैश्विक पानी की मांग आपूर्ति के 40% तक बढ़ सकती है।

बारिश की अनियमितता और कमी का भी बड़ा योगदान है। कीट्स बेस्ट प्रैक्टिस स्वास्थ संगठन के अनुसार, पिछले दो दशकों में मॉनसून की अनिश्चितता और तीव्रता में वृद्धि हुई है, जिससे पानी के स्रोत प्रभावित हुए हैं। इससे न केवल पीने के पानी की समस्या पैदा होती है, बल्कि कृषि, उद्योग और विद्युत उत्पादन पर भी गंभीर असर पड़ता है।

अनेक वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस समस्या की गंभीरता पर जोर दे रहे हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से प्राकृतिक जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ रहा है, जिससे पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

सूखा: कारण और प्रभाव

सूखे को समझने के लिए, इसके प्रमुख कारणों को जानना आवश्यक है। सूखा मुख्यतः वर्षा की कमी के कारण होता है, जिसके पीछे कई प्राकृतिक और मानव निर्मित कारक हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, और भूजल दोहन जैसे तत्व सूखे की संभावनाओं को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, जल संसाधनों का असंतुलित वितरण और खराब कृषि प्रबंधन भी योगदान देते हैं।

कृषि क्षेत्र पर सूखे का प्रभाव सर्वाधिक होता है। किसानों की फसलें बिना जल के बर्बाद हो जाती हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है। कई बार सूखा इतना भीषण हो जाता है कि किसानों को आत्महत्या करने जैसे कठोर कदम उठाने पड़ते हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है, जिसे तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। सूखे के प्रभाव का आदर्श उदाहरण महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में देखा जा सकता है, जहाँ किसान आत्महत्या एक बड़ी समस्या है।

आर्थिक रूप से भी सूखा एक गंभीर चुनौती है। कृषि उत्पादन में कमी आने से खाद्यान्न की कीमतें बढ़ जाती हैं, जो आम जनता की जेब पर भारी पड़ती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं, जिससे लोग वहां से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास करने पर मजबूर हो जाते हैं। यह जनसंख्या प्रवास शहरों में जनसंख्या घनत्व को बढ़ाता है और वहां के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।

सूखा न केवल मानव जीवन बल्कि पर्यावरण को भी प्रभावित करता है। जलाशयों और नदियों का जल स्तर घटने से वन्यजीव और वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है। पड़ोसी क्षेत्रों का उदाहरण लें तो राजस्थान के थार रेगिस्तान में सूखे के कारण कई स्थानों पर जल स्रोत समाप्त हो चुके हैं, जिससे वन्यजीव संकट में हैं।

समाज पर सूखे का असर भी व्यापक और गहरा है। जब एक समुदाय सूखे का सामना करता है, तो उसका मनोबल गिर जाता है। सामाजिक ताना-बाना टूटने लगता है, और यह दबाव कई बार सामाजिक संघर्ष का रूप ले लेता है।

बारिश की कमी: चुनौती और समाधान

बारिश की कमी आज वैश्विक चुनौतियों में से एक बड़ी समस्या बन गई है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के सर्कल में बदलाव आने लगे हैं, जिसके परिणामस्वरूप कहीं अत्यधिक बारिश हो रही है, तो कहीं सूखा पड़ रहा है। यह असंतुलन न केवल किसानों के लिए बल्कि शहरी क्षेत्रों के लिए भी गंभीर समस्या उत्पन्न कर रहा है।

मानसून की समय पर अनियमितता और बारिश की मात्रा में कमी के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है। सूखे की स्थिति में फसलों को पर्याप्त जल न मिल पाने के कारण फसलों का नाश हो जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में जल स्रोतों में कमी और जल संकट के कारण पीने के पानी की आपूर्ति पर भी असर पड़ता है।

इस समस्या से निपटने के लिए जल संरक्षण तकनीकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। जल संचयन (रेनवाटर हार्वेस्टिंग) एक प्रमुख समाधान है जो बारिश के पानी को संग्रहित कर उसे विभिन्न उपयोगों के लिए संरक्षित करता है। इस तकनीक से जल की कमी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, पानी की समुचित उपयोग नीति और जल संसाधनों का प्रबंधन भी आवश्यक है। सरकारी नीतियों में जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जा रही है। उदाहरण के लिए, माइक्रोइरीगेशन और ड्रिप इरीगेशन जैसी तकनीकों के प्रोत्साहन से पानी की बर्बादी कम की जा सकती है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यापक शोध और अध्ययन भी किया जा रहा है, ताकि मानसून की भविष्यवाणी और प्रभावी प्रबंधन किया जा सके। यह समय की मांग है कि हर व्यक्ति जल को संरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ाए, जिससे पानी की कमी की समस्या से निपटा जा सके।

भविष्य की दिशा: सामुदायिक और वैश्विक प्रयास

पानी की समस्या से निपटने के लिए सामुदायिक और वैश्विक दोनों स्तरों पर साझेदारी और सहयोग की आवश्यकता है। विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और सामाजिक अभियान इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे जल संरक्षण, पुनर्भरण और जल साक्षरता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम कर रहे हैं। उदाहरण के रूप में, ‘वॉटर एड’ और ‘सर्ज’ जैसे NGOs ने कई समुदायों में स्वच्छ पानी पहुंचाने और जन-जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का भी इस समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान है। संयुक्त राष्ट्र (UN) के ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स’ में से एक लक्ष्य स्वच्छ पानी और सैनिटेशन का है। इसी के तहत, अंतर्राष्ट्रीय जल सहयोग को बढ़ावा देने और जल संसाधनों के समुचित प्रबंधन के लिए विभिन्न पहलें चलाई जा रही हैं। विश्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएं भी जल परियोजनाओं के लिए फंडिंग मुहैया कराती हैं।

आम जनता की सहभागी भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। स्थानीय स्तर पर व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयास काफी प्रभावी हो सकते हैं। जल साक्षरता अभियान और शिक्षा के माध्यम से पानी के सही उपयोग के तरीके सिखाए जा सकते हैं। समुदाय में ‘रेनवॉटर हार्वेस्टिंग’ और जल पुनर्भरण इकाइयों की स्थापना जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। इसके अलावा, पानी की बर्बादी रोकने के लिए जनता को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

भविष्य की दिशा में जल संरक्षण हेतु तकनीकी और वैज्ञानिक विधियों का भी संपूर्ण उपयोग जरूरी है। ड्रिप इरिगेशन, ग्रे वॉटर रीसाइक्लिंग और जल पुनर्भरण जैसी तकनीकें अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जानी चाहिए। सरकार, NGOs, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और आम जनता की एकीकृत कोशिशें ही पानी की समस्या के दीर्घकालिक समाधान के लिए कारगर साबित हो सकती हैं।

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