“कभी-कभी बस चुप रह जाना ही सबसे बड़ी बहादुरी होती है…”

कभी-कभी हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं…
लेकिन लगता है कोई सुनेगा ही नहीं।
हम मुस्कुरा देते हैं…
जबकि अंदर एक सूनापन छुपा होता है।

कभी रिश्तों में, कभी ज़िम्मेदारियों में…
हम खुद को इतना खो देते हैं कि
अपनी ख़ुशी क्या है, ये भी याद नहीं रहता।

हम दिनभर हँसते हैं, काम करते हैं,
लेकिन रात में जब सब सो जाते हैं,
तब अकेलापन चुपचाप आकर हमें गले लगाता है।

और हम सोचते हैं —
“क्या कभी कोई मुझे बिना कहे समझ पाएगा?”
“क्या मेरी थकान, मेरी चुप्पी, मेरी बेचैनी… कोई देख पाएगा?”

सच कहूं…
थक गई हूँ मैं सब कुछ संभालते-संभालते,
खुद को मज़बूत दिखाते-दिखाते।

अब बस कभी-कभी दिल करता है…
“कोई बस कहे — अब तुम थक गई हो, अब मैं संभाल लूं?”


अगर आप भी कभी ऐसा महसूस करते हैं, तो कमेंट में एक ❤️ भेजें।
क्या आपने भी कभी ऐसा महसूस किया है कि… लोग सिर्फ आपसे उम्मीद रखते हैं, लेकिन आपकी थकान को नहीं समझते?

2 thoughts on ““कभी-कभी बस चुप रह जाना ही सबसे बड़ी बहादुरी होती है…”

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