रिश्ते में प्यार कम नहीं हुआ, बस समझ कम हो गई
हर रिश्ते में प्यार हमेशा रहता है, पर जब समझ और संवाद कम हो जाते हैं, तो दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। जानिए क्यों रिश्ते टूटते नहीं, बस थक जाते हैं — और कैसे थोड़ा सा धैर्य और समझ रिश्ते को फिर से जीवित कर सकता है।
कभी सोचा है,
रिश्ते टूटते नहीं… बस थक जाते हैं।
लोग बदलते नहीं… बस अब पहले जैसी बात नहीं करते।
और प्यार?
वो भी कम नहीं होता, बस समझ और धैर्य कहीं पीछे छूट जाते हैं।
शुरुआत में हर रिश्ता एक कहानी की तरह होता है —
हर बात में उत्साह, हर शब्द में अपनापन।
पर धीरे-धीरे ज़िन्दगी की भागदौड़, गलतफहमियाँ, और उम्मीदों का बोझ उस प्यार को ढँकने लगता है।
हम समझ नहीं पाते कि जो इंसान पहले हमारी हर बात समझ जाता था,
आज वही इतना दूर कैसे हो गया।
पर सच्चाई ये है —
प्यार अब भी वहीं है,
बस उसे अब शब्द नहीं मिलते।
शुरुआत में सब कितना खूबसूरत लगता है
जब कोई नया रिश्ता शुरू होता है,
तो हर चीज़ में एक अलग सी चमक होती है।
हर सुबह मैसेज से शुरू होती है,
हर शाम किसी बात पर मुस्कान से खत्म होती है।
हर छोटी सी गलती पर भी मनाने का बहाना मिल जाता है,
हर गलतफहमी बातचीत में ही खत्म हो जाती है।
क्योंकि तब समझने की कोशिश होती है।
पर वक्त के साथ वो कोशिशें कम होने लगती हैं।
अब अगर कुछ गलत हो जाए,
तो बात करने के बजाय चुप्पी जवाब बन जाती है।
कभी ध्यान दिया है?
पहले जो “क्या हुआ?” पूछने की आदत थी,
वो अब “तुम्हें ही तो हमेशा दिक्कत रहती है” में बदल जाती है।
प्यार की जड़ समझ में होती है
प्यार सिर्फ़ “आई लव यू” कहने से नहीं चलता,
वो चलता है “मैं तुम्हें समझता हूँ” से।
रिश्ते की सबसे बड़ी ताकत यही होती है —
एक-दूसरे की बात बिना कहे समझ जाना।
पर जब वो समझ खत्म हो जाती है,
तो बातें शुरू होकर झगड़े में खत्म होती हैं।
कभी-कभी हम सिर्फ़ सुने जाने की उम्मीद करते हैं,
पर सामने वाला जवाब देने में व्यस्त रहता है।
और धीरे-धीरे बातचीत, जो रिश्ते की जान होती है,
वो खत्म होने लगती है।
लोग कहते हैं – “अब पहले जैसा प्यार नहीं रहा।”
पर सच्चाई ये है —
प्यार तो है,
बस अब कोई किसी को समझने की कोशिश नहीं करता।
जब ‘हम’ से ‘मैं’ बन जाते हैं
हर रिश्ता तब तक खूबसूरत रहता है
जब तक उसमें “हम” ज़िंदा है।
पर जब “हम” की जगह “मैं” आने लगता है,
तो दरार वहीं से शुरू होती है।
अब दोनों को अपनी-अपनी बातें सही लगती हैं।
कोई झुकना नहीं चाहता,
कोई सुनना नहीं चाहता।
और फिर वो रिश्ता,
जिसे कभी प्यार और अपनापन जोड़ता था,
अब ego और expectations तोड़ने लगते हैं।
धीरे-धीरे नज़दीकियाँ औपचारिक हो जाती हैं,
बातें कम और खामोशियाँ ज़्यादा हो जाती हैं।
दिलों में प्यार अब भी है,
पर अब वो दिखता नहीं… बस महसूस होता है — अकेले में।
जब प्यार खामोशी में बदल जाता है
कभी वो इंसान जो तुम्हारे हर दर्द की वजह जानता था,
अब तुम्हारे चुप रहने की वजह पूछना भी छोड़ देता है।
पहले हर झगड़े के बाद ‘सॉरी’ की जगह होती थी,
अब ‘मूड खराब है’ सुनकर भी कोई परवाह नहीं करता।
रिश्ता वहीं होता है,
लोग वही होते हैं,
बस अब दिलों के बीच एक दीवार खड़ी हो जाती है —
गलतफहमी, अहंकार और वक्त की।
कभी-कभी बात इतनी छोटी होती है कि बस एक “चलो भूल जाओ” काफी होता,
पर कोई नहीं कहता —
क्योंकि अब दोनों को सही साबित करना ज़्यादा ज़रूरी लगने लगता है,
रिश्ता बचाना नहीं।
समझ की कमी ही रिश्तों की दूरी है
रिश्ते की नींव प्यार पर नहीं, समझ पर टिकती है।
क्योंकि प्यार तो सब करते हैं,
पर जो समझे, वही निभा पाता है।
हर बार किसी को समझाना ज़रूरी नहीं,
कभी-कभी बस सुन लेना भी काफी होता है।
पर आजकल सुनने का वक़्त किसके पास है?
सबको जवाब देना आता है,
समझना किसी को नहीं।
एक वक्त के बाद,
लोग बोलना बंद कर देते हैं —
क्योंकि जब हर बात को तर्क या ताना समझ लिया जाए,
तो दिल फिर बोलना बंद कर देता है।
प्यार को ज़िंदा रखने के लिए क्या चाहिए?
सिर्फ़ थोड़ा-सा धैर्य,
थोड़ी-सी समझ,
और बहुत सारा सम्मान।
हर रिश्ता perfect नहीं होता,
पर जब दो imperfect लोग एक-दूसरे को समझने की कोशिश करते हैं,
तो वही रिश्ता खूबसूरत बन जाता है।
कभी-कभी अपने ego को थोड़ा नीचे रखना भी ज़रूरी है,
क्योंकि “मैं सही हूँ” से ज़्यादा ज़रूरी है “हम ठीक हैं।”
बात करना बंद मत करो।
क्योंकि हर बार चुप रहना,
थोड़ा-थोड़ा करके रिश्ते को खत्म कर देता है।
अगर अब भी प्यार बाकी है…
अगर तुम अब भी उस इंसान की परवाह करते हो,
अगर अब भी उसके बारे में सोचते हो,
तो एक बार फिर कोशिश करो।
क्योंकि हर रिश्ता जो समझ की कमी से दूर हुआ है,
वो थोड़ी-सी कोशिश से वापस भी आ सकता है।
कभी-कभी एक सॉरी,
एक छोटी-सी मुस्कान,
या बस एक “चलो फिर से शुरू करते हैं”
वो सब ठीक कर सकता है जो वक़्त ने बिगाड़ दिया।
रिश्ते को समय दो।
क्योंकि वक्त से बढ़कर कोई healer नहीं होता।
अंत में…
रिश्ते टूटते नहीं, बस थक जाते हैं।
और जब दो लोग थक जाएं,
तो उन्हें थोड़ी समझ, थोड़ा सुकून और बहुत सारा प्यार चाहिए।
कभी-कभी प्यार जताने से ज़्यादा,
सुनने और समझने की ज़रूरत होती है।
क्योंकि सच्चा प्यार वही है
जो वक़्त के साथ बदलकर भी
एक-दूसरे को वही महसूस करवाए —
“मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
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