
मैं कितनी क्रिएटिव हूँ? – मेरी रचनात्मकता दिखती नहीं, महसूस होती है
अक्सर जब कोई मुझसे पूछता है —
“तुम कितनी क्रिएटिव हो?”
तो मैं कुछ पल चुप हो जाती हूँ।
क्योंकि मेरी क्रिएटिविटी को एक लाइन में समझाया नहीं जा सकता।
लोगों ने क्रिएटिविटी को कला, रंग, स्टेज और तालियों तक सीमित कर दिया है।
लेकिन मेरी रचनात्मकता उन जगहों पर पैदा हुई है जहाँ कोई तालियाँ नहीं थीं,
जहाँ सिर्फ संघर्ष था, खामोशी थी और खुद से बातें करने का वक्त था।
मैंने सीखा है कि क्रिएटिव होना मतलब कुछ दिखाना नहीं,
बल्कि बहुत कुछ सहकर भी खुद को ज़िंदा रखना।
मेरी क्रिएटिविटी मेरी भावनाओं से जन्म लेती है
मैं गहराई से महसूस करती हूँ।
शायद ज़रूरत से ज़्यादा।
जब मैं खुश होती हूँ तो पूरी तरह।
और जब दुखी होती हूँ तो चुपचाप।
मेरी ज़िंदगी में कई ऐसे पल आए हैं जब मेरी भावनाओं को हल्के में लिया गया,
जब मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी समझा गया।
लेकिन उन्हीं पलों में मेरी क्रिएटिविटी ने मेरा हाथ थामा।
जब मैं किसी से कुछ कह नहीं पाती, मैं लिख देती हूँ।
जब मेरे अंदर बहुत कुछ भरा होता है, मैं शब्दों में उसे हल्का कर लेती हूँ।
मेरी लेखनी मेरे उन एहसासों की आवाज़ है जिन्हें दुनिया ने सुनने की कोशिश ही नहीं की।
मेरी क्रिएटिविटी मेरी खामोशी में साँस लेती है
मेरी खामोशी खाली नहीं है।
उसमें यादें हैं, सवाल हैं, टूटे हुए भरोसे हैं, और अधूरे सपने हैं।
मैंने चुप रहकर बहुत कुछ सीखा है —
लोगों को समझना, हालात को पढ़ना, और खुद को संभालना।
जब दुनिया मुझे अनदेखा करती है,
तब मेरी रचनात्मकता मुझे याद दिलाती है कि
मैं खुद के लिए काफ़ी हूँ।
मैं अपनी खामोशी को बोझ नहीं बनने देती,
मैं उसे ताक़त बना लेती हूँ।
और यही मेरी क्रिएटिविटी है —
बिना शोर किए मजबूत बन जाना।
मेरी क्रिएटिविटी दर्द से होकर गुज़रती है
हर इंसान की ज़िंदगी में दर्द आता है,
लेकिन हर कोई उसे एक जैसा नहीं संभालता।
मैंने दर्द को अपने भीतर सड़ने नहीं दिया।
मैंने उसे समझा, महसूस किया और फिर उसे शब्दों में ढाल दिया।
जब मैं टूटी,
मैंने खुद को बिखरने नहीं दिया।
मैंने रुककर खुद को दोबारा जोड़ा।
मेरी क्रिएटिविटी मुझे सिखाती है कि
हर गिरावट अंत नहीं होती,
कभी-कभी वो खुद को नए सिरे से बनाने का मौका होती है।
मेरी लेखनी मेरी सबसे ईमानदार दोस्त है
मेरे लिए लिखना कोई शौक नहीं,
ये मेरी ज़रूरत है।
जब मैं गुस्से में होती हूँ, मैं लिखती हूँ।
जब मैं थकी होती हूँ, मैं लिखती हूँ।
और जब मुझे खुद से बात करनी होती है, तब भी मैं लिखती हूँ।
काग़ज़ ने मुझे कभी जज नहीं किया।
शब्दों ने मुझे कभी चुप नहीं कराया।
मेरी लेखनी ने मुझे वो आज़ादी दी है
जो मैं ज़िंदगी में हर जगह महसूस नहीं कर पाई।
मेरी क्रिएटिविटी मेरा खुद से रिश्ता है
सबसे कठिन रिश्ता जो मैंने निभाया है,
वो है खुद से।
खुद को समझना,
खुद को माफ़ करना,
और खुद के साथ खड़ा रहना —
ये सब आसान नहीं होता।
कई बार मैं खुद से ही हार मानने वाली थी,
लेकिन मेरी क्रिएटिविटी ने मुझे रोका।
उसने कहा —
“थकी हो, कमजोर नहीं।”
“रुकी हो, खत्म नहीं हुई।”
मैं हर दिन खुद को थोड़ा बेहतर बनाने की कोशिश करती हूँ।
और यही मेरी सबसे बड़ी रचना है — मैं खुद।
मेरी क्रिएटिविटी हार न मानने का नाम है
मेरी कहानी परफेक्ट नहीं है।
लेकिन वो सच्ची है।
मैं हर दिन कुछ नया सीखती हूँ,
कुछ पुराना छोड़ती हूँ,
और कुछ नया बन जाती हूँ।
मेरी क्रिएटिविटी मुझे रास्ता नहीं दिखाती,
लेकिन चलने की हिम्मत ज़रूर देती है।
मैं जानती हूँ —
शायद मेरी रचनात्मकता सबको नज़र न आए,
लेकिन जिसने भी इसे महसूस किया,
उसने खुद को इसमें पाया है।
मेरी क्रिएटिविटी मेरी पहचान है
तो अगर कोई आज मुझसे पूछे —
“तुम कितनी क्रिएटिव हो?”
तो मेरा जवाब होगा:
मैं क्रिएटिव हूँ क्योंकि
मैं महसूस करती हूँ,
मैं सहती हूँ,
मैं सीखती हूँ,
और हर बार टूटकर भी
खुद को फिर से खड़ा कर लेती हूँ।
मेरी क्रिएटिविटी दिखावे में नहीं,
मेरे जीने के तरीके में है।
इतनी गहराई से समझने और महसूस करने के लिए दिल से धन्यवाद।
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत कीमती है 🌸
यह रचना केवल रचनात्मकता की परिभाषा नहीं देती, बल्कि उसे जीकर दिखाती है। इसमें क्रिएटिविटी को मंच, तालियाँ या दिखावे से अलग रखकर जीवन, संघर्ष और आत्मबोध से जोड़ा गया है—और यही इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती है। शब्दों में सादगी है, लेकिन भावनाओं में गहराई, जो सीधे पाठक के मन तक पहुँचती है।
खामोशी, दर्द, और आत्मसंघर्ष को जिस ईमानदारी से स्वीकार किया गया है, वह इस लेख को बेहद मानवीय बनाता है। लेखिका ने यह बहुत सुंदर ढंग से दिखाया है कि रचनात्मकता सिर्फ कुछ रचने का नाम नहीं, बल्कि टूटने के बाद खुद को समेटने और आगे बढ़ने की शक्ति भी है। लेखनी को दोस्त, सहारा और आज़ादी बताना बेहद प्रभावशाली है