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निर्जला एकादशी: आस्था, संयम और आत्मशुद्धि का पर्व

जानिए निर्जला एकादशी का महत्व, व्रत के नियम और इसके आध्यात्मिक एवं स्वास्थ्य लाभ। इस व्रत से मिलती है सभी एकादशियों का पुण्य।

निर्जला एकादशी क्या है?

निर्जला एकादशी वर्ष की सबसे कठिन लेकिन सबसे पुण्यदायक एकादशी मानी जाती है। ‘निर्जला’ का अर्थ है बिना जल के। इस दिन व्रती बिना अन्न और जल के उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

इसका धार्मिक महत्व

  • ऐसा माना जाता है कि इस एक व्रत को करने से वर्ष की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।

  • यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।

व्रत के नियम

  • सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  • भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।

  • दिन भर जल और भोजन त्याग करें।

  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या भजन-कीर्तन करें।

  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें (यदि स्वास्थ्य अनुमति दे तो)।

स्वास्थ्य और मानसिक लाभ

  • यह शरीर को प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स करता है।

  • आत्म-संयम और भावनात्मक मजबूती बढ़ाता है।

  • नकारात्मकता से दूरी और ईश्वर से जुड़ने का अवसर देता है।

किन्हें व्रत नहीं करना चाहिए?

  • गर्भवती महिलाएं, वृद्धजन, या बीमार व्यक्ति इस व्रत को करने से पहले डॉक्टर की सलाह लें।

  • चाहें तो फलाहार व्रत या आंशिक उपवास भी श्रद्धा के साथ कर सकते हैं।

    निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा

    एक बार महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी व्रतों के महत्व के बारे में बताया। जब भीम ने यह सुना तो उसने कहा:

    “मैं सब एकादशी व्रत नहीं कर सकता क्योंकि मुझे बिना भोजन के रहना बहुत कठिन लगता है। मैं क्या करूं ताकि मुझे भी पुण्य मिले?”

    भीम बहुत बलवान और भोजन प्रेमी था। वह दिन में दो बार भारी भोजन करता था। इसलिए वह हर एकादशी पर उपवास नहीं कर पाता था।

    महर्षि व्यास ने कहा:

    “यदि तुम वर्षभर की सभी एकादशियों का पुण्य पाना चाहते हो, तो सिर्फ एक निर्जला एकादशी का व्रत कर लो। यह सबसे कठिन है क्योंकि इसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। लेकिन इसका फल बाकी सभी 24 एकादशियों के बराबर होता है।”

    भीम ने संकल्प लिया और जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी (यानी निर्जला एकादशी) का व्रत किया। उसने पूरे दिन और रात तक बिना जल और अन्न के व्रत रखा। इस कठिन तप के बाद, भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उसे आशीर्वाद दिया कि वह समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त करेगा।

    तब से यह मान्यता बनी कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे बाकी सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है और उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।


    🪔 निर्जला एकादशी की कथा से प्रेरणा मिलती है कि अगर मन में श्रद्धा हो, तो कठिन से कठिन व्रत भी संभव है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मसंयम को भी मजबूत करता है।

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