दुर्गा पूजा: सिर्फ़ एक उत्सव नहीं, एक नयी शुरुआत का एहसास
दुर्गा पूजा का नाम आते ही आँखों के सामने माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा, सजते हुए पंडाल, ढाक की धुन और भोग की खुशबू तैरने लगती है। लेकिन अगर दिल से महसूस करें, तो यह उत्सव सिर्फ़ पूजा-पाठ या शोभा यात्रा तक सीमित नहीं है।
यह हर इंसान के जीवन में एक नयी शुरुआत का एहसास लेकर आता है।
माँ दुर्गा का आगमन मानो हमारे जीवन में आशा और विश्वास लेकर आता है। जब हम माँ के सामने खड़े होकर अपनी तकलीफ़ें और दिल की बातें चुपचाप कह जाते हैं, तो लगता है जैसे कोई हमारी सारी पीड़ा समझ रहा है। उस पल आँखे नम होती हैं, लेकिन दिल हल्का हो जाता है।
कितनी ही बार ऐसा होता है कि हम अंदर से टूट जाते हैं, थक जाते हैं, हार मानने लगते हैं। और तभी यह पर्व हमें याद दिलाता है—
“हर अंधकार के बाद रोशनी आती है, हर हार के बाद नयी जीत जन्म लेती है।”
दुर्गा पूजा का असली संदेश यही है कि हम अपने डर और नकारात्मकता को त्यागकर नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ें।
जैसे माँ महिषासुर का संहार करती हैं, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के संदेह, दुख और कमजोरी को हराना होता है।
यह पर्व सिर्फ़ देवियों की महिमा नहीं बताता, बल्कि यह भी सिखाता है कि हर औरत के भीतर एक दुर्गा छिपी है।
एक ऐसी शक्ति जो परिवार को जोड़ती है, रिश्तों को संवारती है और मुश्किल समय में हिम्मत बनकर खड़ी रहती है।
दुर्गा पूजा एक परिवार को भी जोड़ती है। साल भर की भागदौड़ के बीच जब पूरा परिवार पंडाल में साथ बैठकर माँ के दर्शन करता है, तो यह अहसास होता है कि भले ही वक्त हमें दूर कर दे, पर आस्था हमें फिर करीब ले आती है।
और जब माँ की प्रतिमा का विसर्जन होता है, तो आँखे छलक पड़ती हैं। पर दिल में यह विश्वास भी होता है कि माँ फिर आएँगी, फिर खुशियाँ लाएँगी और हमें नयी शुरुआत का हौसला देंगी।
🌸 निष्कर्ष:
दुर्गा पूजा सिर्फ़ त्योहार नहीं, बल्कि यह हमें ज़िंदगी जीने का एक नया दृष्टिकोण देती है।
यह हमें याद दिलाती है कि हर हार के बाद एक नयी शुरुआत होती है, हर अंत के बाद एक नया अध्याय खुलता है।
तो आइए, इस दुर्गा पूजा हम सिर्फ़ माँ की मूर्ति को न देखें, बल्कि अपने भीतर छिपी “माँ की शक्ति” को पहचानें और नयी उम्मीद के साथ जीवन की राह पर आगे बढ़ें।