“जब सब कुछ ठीक लगता है, तब भी अंदर कुछ टूट रहा होता है…”
कई बार ज़िंदगी बाहर से बिल्कुल शांत और सुखद लगती है।
चेहरे पर मुस्कान होती है, बातें सामान्य होती हैं, और सब कुछ ‘ठीक’ दिखता है।
लेकिन क्या कभी किसी ने उस मुस्कान के पीछे छुपे दर्द को देखा है?
जब हम कहते हैं “मैं ठीक हूँ”, तो अक्सर हम नहीं होते।
हम सिर्फ टूटने की इजाज़त खुद को नहीं देते।
लोग समझते हैं — “इसकी ज़िंदगी में तो कोई परेशानी नहीं है”,
लेकिन सच ये है कि सबसे ज़्यादा दर्द अक्सर वही लोग झेल रहे होते हैं,
जो सबसे ज़्यादा मुस्कुरा रहे होते हैं।
कुछ टूटन ऐसी होती है जो आवाज़ नहीं करती —
वो धीरे-धीरे अंदर ही अंदर इंसान को थका देती है।
💬 अंत की पंक्तियाँ (Closing lines):
अगर आप भी ऐसी किसी चुप्पी से गुज़र रहे हैं,
तो याद रखिए —
आप अकेले नहीं हैं।
किसी अपने से बात कीजिए, खुद को समझिए, और खुद पर विश्वास रखिए।
हर दर्द का इलाज नहीं होता, पर हर दर्द को बांटना थोड़ा सुकून ज़रूर देता है। 💔
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