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हाल ही में मैंने क्या सीखा – Toxic रिश्तों से दूर होकर खुद को चुनना

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एक औरत की ज़िंदगी में सबसे मुश्किल काम कभी-कभी किसी और से लड़ना नहीं होता, बल्कि खुद को यह समझाना होता है कि हर रिश्ता निभाने के लिए नहीं होता, क्योंकि हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि सहना ही ताकत है, चुप रहना ही समझदारी है, और रिश्ते टूटने से बेहतर है खुद टूट जाना, लेकिन हाल ही में मैंने ज़िंदगी से यह बहुत गहरी सीख ली है कि जो रिश्ता आपको रोज़-रोज़ अंदर से थका दे, जो आपकी शांति छीन ले, और जहाँ आपको अपनी भावनाओं को साबित करना पड़े, वहाँ रुकना ताकत नहीं बल्कि खुद के साथ नाइंसाफी है।

मैंने यह महसूस किया कि toxic लोग हमेशा गाली या ज़ोर-ज़ोर से नहीं बोलते, कई बार वे मीठी बातों में ज़हर घोलते हैं, आपकी बातों को हल्के में लेते हैं, आपकी भावनाओं को “ज़्यादा सोचने” का नाम देते हैं, और धीरे-धीरे आपको ही यह यकीन दिला देते हैं कि शायद गलती आपकी है, और एक औरत होने के नाते हम अक्सर इस भ्रम में फँस जाती हैं कि शायद हमें और समझदार बनना चाहिए, और adjust करना चाहिए, लेकिन सच यह है कि जहाँ सम्मान नहीं होता, वहाँ adjustment सिर्फ खुद को खो देना होता है।

हाल ही में मैंने यह सीखा कि अगर किसी की बातें दिल को बार-बार चुभें, अगर किसी के साथ रहने से मन भारी रहे, अगर किसी रिश्ते के बाद खुद से नफरत होने लगे, तो उस रिश्ते से दूरी बनाना ग़लत नहीं है, क्योंकि खुद की मानसिक शांति भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी किसी रिश्ते को निभाना, और यह फैसला आसान नहीं होता, खासकर एक औरत के लिए, जिसे हर कदम पर यह डर सिखाया जाता है कि लोग क्या कहेंगे।

लेकिन इसी सफ़र में मैंने यह भी जाना कि जब हम toxic रिश्तों से दूर होते हैं, तब हमें यह साफ़ दिखाई देने लगता है कि हमारी ज़िंदगी में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना शर्त हमारे साथ खड़े रहते हैं, जो हमारे बुरे वक़्त में सवाल नहीं पूछते बल्कि चुपचाप हमारा हाथ पकड़ लेते हैं, और मेरे लिए ऐसे रिश्ते मेरी माँ हैं, जिन्होंने हमेशा बिना शर्त मुझे समझा, मेरे पति हैं, जिन्होंने मुझे बदलने की कोशिश नहीं की बल्कि मुझे वैसे ही अपनाया, मेरे सास-ससुर और मेरी ननद हैं, जिन्होंने मुश्किल समय में मुझे बोझ नहीं बल्कि परिवार माना, और कुछ ऐसे लोग हैं जो शायद बहुत ज़्यादा दिखाई नहीं देते, लेकिन जब ज़िंदगी सबसे ज़्यादा भारी होती है, तब वही सबसे मज़बूत सहारा बनते हैं।

मैंने यह भी सीखा कि प्यार हमेशा बड़ा-बड़ा बोलने से नहीं पहचाना जाता, बल्कि वह उन छोटे-छोटे पलों में दिखता है जहाँ कोई आपकी चुप्पी समझता है, आपकी थकान देखता है, और बिना पूछे आपके लिए जगह बना देता है, और जब ऐसे लोग आपकी ज़िंदगी में हों, तब toxic रिश्तों को ढोते रहना खुद के साथ बेईमानी है।

आज मैं यह समझ पाई हूँ कि ज़िंदगी बहुत छोटी है toxic लोगों को सहने के लिए, और बहुत कीमती है उन रिश्तों को संजोने के लिए जो बिना शर्त अपनापन देते हैं, क्योंकि हर रिश्ता हमारी ऊर्जा का हक़दार नहीं होता, और हर इंसान को हमारी भावनाओं तक पहुँचने का अधिकार नहीं होता।

एक औरत के रूप में यह सीखना बहुत ज़रूरी है कि खुद को चुनना selfish होना नहीं है, बल्कि खुद को बचाना है, क्योंकि जब हम खुद से जुड़ते हैं, तभी हम दूसरों के लिए भी सच में मौजूद रह पाते हैं।


Conclusion

हाल ही में मैंने यह सीखा है कि शांति को चुनना, खुद को चुनना और toxic रिश्तों से दूर होना हार नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है, जहाँ एक औरत खुद को फिर से पहचानना शुरू करती है — बिना डर, बिना guilt और बिना सफ़ाई दिए।


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