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दिल तोड़ने वाले खुश रहते हैं क्या?

दिल तोड़ने वाले खुश रहते हैं क्या?

कभी-कभी ज़िंदगी इतने इम्तिहान लेती है कि इंसान खुद से सवाल करने लगता है — आख़िर ऐसा क्यों मेरे साथ ही होता है?
शायद इसलिए, क्योंकि भगवान जानते हैं कि कुछ लोग टूटकर भी मुस्कुरा सकते हैं, और मैं उन्हीं लोगों में से एक हूँ।

मेरी कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ बहुतों की ख़त्म हो जाती है — मेरे पापा इस दुनिया से चले गए थे, इससे पहले कि मैं उनके “पापा” कहने की उम्र तक पहुँच पाती।
मेरे लिए पिता का मतलब हमेशा एक खाली जगह रहा, और मेरी माँ के लिए — एक ऐसी लड़ाई जो कभी खत्म नहीं हुई।
उन्होंने अकेले ही सब संभाला, मुझे पालने के साथ-साथ खुद को भी संभाला, और शायद उसी दिन से मैंने सीखा कि मजबूत होना कोई चाहत नहीं, मजबूरी होती है।

रिश्तेदारों ने मदद करने के बजाय हमारे ज़ख्मों पर नमक छिड़कना ज़्यादा आसान समझा।
कभी ताने, कभी बातें, कभी एहसान का बोझ — हर चीज़ ने अंदर से तोड़ा, लेकिन माँ ने हमेशा कहा,
“बेटा, दूसरों के बुरे होने से तू अच्छा होना मत छोड़ना।”
शायद इसी एक लाइन ने मुझे इंसान बनाए रखा, वरना हालात तो बहुत पहले मुझे पत्थर बना चुके थे।

ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैंने भरोसा किया — रिश्तों पर, दोस्तों पर, और उस एहसास पर जिसे लोग प्यार कहते हैं।
लेकिन हर बार बदले में मिला दर्द, धोखा और वो चुप्पी जो किसी की आँखों में भी पढ़ी जा सकती है।
कभी लगा कि शायद मुझमें ही कुछ कमी है, शायद मैं ही भरोसे के काबिल नहीं हूँ,
क्योंकि जब दिल बार-बार टूटता है, तो इंसान खुद पर भी शक करने लगता है।

एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं किसी पर भी विश्वास करने से डरने लगी।
दिल में हमेशा एक दीवार खड़ी रहती थी — किसी को अंदर आने से रोकने वाली, और खुद को फिर से टूटने से बचाने वाली।
लेकिन ज़िंदगी को शायद मेरी हिम्मत पर भरोसा था, तभी उसने किसी को भेजा, जो उस दीवार के पार चला गया — बहुत धीरे-धीरे, बहुत सच्चाई से।

वो मेरा दोस्त था, एक ऐसा इंसान जिसने बिना कुछ मांगे सिर्फ साथ दिया।
कभी मेरे आँसू को मज़ाक नहीं बनाया, कभी मेरे डर को नज़रअंदाज़ नहीं किया।
धीरे-धीरे वही इंसान मेरी हिम्मत बन गया, मेरा सुकून बन गया, और मुझे ये एहसास दिलाया कि हर कोई एक जैसा नहीं होता।
कुछ लोग सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि वो तुम्हारे टूटे हुए भरोसे को फिर से जोड़ दें।

और फिर 3 फरवरी 2025 का दिन आया — वो दिन जब मैंने सिर्फ शादी नहीं की, बल्कि अपने डर, अपने पुराने दर्द और अपने सारे टूटे हुए यकीन को पीछे छोड़ दिया।
उस दिन मैंने महसूस किया कि कभी-कभी भगवान हमें बहुत देर से वो चीज़ देते हैं जो हम सबसे पहले मांगते हैं — क्योंकि वो चाहते हैं कि पहले हम उसकी कीमत समझें।

लेकिन आज भी जब मैं अकेली बैठती हूँ, तो मन में एक सवाल उठता है —
क्या वो लोग, जिन्होंने मुझे रुलाया, जिन्होंने मेरे सच्चे दिल को ठुकराया,
जो मेरे भरोसे से खेलते रहे — क्या वो सच में खुश हैं?

शायद वो बाहर से खुश दिखते होंगे,
Instagram पर मुस्कुराते होंगे, दूसरों के साथ हँसते होंगे,
पर अंदर कहीं न कहीं एक खालीपन जरूर होगा।
क्योंकि जो इंसान किसी सच्चे दिल को रुलाता है,
वो खुद भी किसी दिन उसी दर्द से गुजरता है।
वो सुकून जो सच्चे रिश्तों से मिलता है, वो छल से नहीं मिलता।
जो दिल तोड़ते हैं, वो कुछ वक्त के लिए जीत जरूर जाते हैं,
लेकिन ज़िंदगी के असली सुकून से हार जाते हैं।

अब मैं जान चुकी हूँ कि खुश रहना किसी के साथ नहीं, अपने अंदर के भरोसे के साथ शुरू होता है।
अब मैं किसी से उम्मीद नहीं रखती, लेकिन प्यार और भरोसे पर यकीन रखती हूँ — क्योंकि मेरा दिल अब भी सच्चा है।
और सच्चे दिल कभी हारते नहीं… वो बस वक्त आने पर चमकते हैं, जैसे राख में छिपा हुआ सोना।


   सीख जो मेरी कहानी ने दी:

  • जो तुम्हें रुलाते हैं, उन्हें वक्त खुद जवाब देता है।

  • भरोसा करना बंद मत करो, बस समझदारी से करो।

  • अपनी अच्छाई को किसी के बुरे व्यवहार के कारण बदलो मत।

  • और याद रखो — सच्चे लोग देर से मिलते हैं, पर हमेशा के लिए रहते हैं।


                                                                                             personal experience