जब एक बेटी अपने मायके से विदा होती है, तो सिर्फ वो नहीं जाती—पूरा घर उदास हो जाता है। पढ़िए एक इमोशनल ब्लॉग जो रिश्तों की गहराई को छूता है। बेटी, माता-पिता और नई जिम्मेदारियों के बीच का सच।
“बेटियाँ घर नहीं छोड़तीं, वो तो अपने हिस्से का आसमान दूसरों को दे देती हैं…”
जब एक बेटी विदा होती है, तो सिर्फ उसका सामान नहीं जाता…
उसके साथ माँ की ममता, पिता की छांव, भाई की शरारतें और घर की रौनक भी धीरे-धीरे चुप हो जाती है।
शादी एक खूबसूरत बंधन है, पर उसके पीछे एक गहरी चुप्पी होती है —
वो पल जब माँ खाना नहीं खा पाती, जब पापा बेवजह सीढ़ियों की तरफ देखते हैं…
जहाँ वो बेटी हर दिन भाग-दौड़ में नजर आती थी, अब वहां सन्नाटा पसरा होता है।
बेटी मुस्कुराकर जाती है, लेकिन अंदर से कांपती है।
एक नया घर, नए रिश्ते, नई जिम्मेदारियाँ… और सबसे बड़ा डर — “क्या मैं वहाँ भी वैसे ही अपनाई जाऊँगी?”
वो रोती है… पर छुपकर,
वो हँसती है… पर मजबूरी में।
वो निभाती है हर रिश्ता… पर खुद को भूल कर।
शायद यही होता है बेटियों का प्यार —
खुद को मिटाकर सबके लिए रौशनी बन जाना।
एक सलाम उन सभी बेटियों को
जो हर दिन किसी नए रिश्ते को अपनी मुस्कान से संवारती हैं।
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